उत्तराखंड का इतिहास : मध्य काल (Uttarakhand History : Medieval Period)

उत्तराखंड का इतिहास : मध्य काल (Uttarakhand History : Medieval Period)

uttarakhand history
Uttarakhand History

ऐतिहासिक काल – 

ऐतिहासिक काल को तीन भागो में बांटा जा सकता है
>> प्राचीन काल 
>> मध्य काल
>> आधुनिक काल

मध्य काल (Medieval Period)- मध्यकाल के इतिहास में हम कत्यूरी शासन , चन्द वंश तथा गढ़वाल के परमार (पवांर ) वंश के बारे में अध्ययन करेंगे |

>> कत्यूरी वंश 

  • मध्यकाल में कुमाऊं में कत्यूरियों का शासन था इसके बारे में जानकारी हमें स्थानीय लोकगाथाओं व जागर से मिलती है कर्तिकेयपुर वंश के बाद कुमाऊं में कत्यूरियों का शासन हुआ |
  • सन् 740 ई. से 1000 ई. तक गढ़वाल व कुमाऊं पर कत्यूरी वंश के तीन परिवारों का शासन रहा , तथा इनकी राजधानी कर्तिकेयपुर (जोशीमठ) थी|
  •  आसंतिदेव ने कत्यूरी राज्य में आसंतिदेव वंश की स्थापना की और अपनी राजधानी जोशीमठ से रणचुलाकोट में स्थापित की |
  • कत्यूरी वंश का अंतिम शासक ब्रह्मदेव था यह एक अत्याचारी शासक था जागरो में इसे वीरमदेव कहा गया है|
  • जियारानी की लोकगाथा के अनुसार 1398 में तैमूर लंग ने हरिद्वार पर आक्रमण किया और ब्रह्मदेव ने उसका सामना किया और इसी आक्रमण के बाद कत्यूरी वंश का अंत हो गया|
  • 1191 में पश्चिमी नेपाल के राजा अशोकचल्ल ने कत्यूरी राज्य पर आक्रमण कर उसके कुछ भाग पर कब्ज़ा कर लिया|
  • 1223 ई. में नेपाल के शासक  काचल्देव  ने   कुमाऊॅ पर आक्रमण कर लिया और कत्यूरी शासन को अपने अधिकार में ले लिया।

>> कुमाऊं का चन्द वंश –

  • कुमाऊं में चन्द वंश का संस्थापक सोमचंद था जो 700 ई. में गद्दी पर बैठा  था|
  • कुमाऊं में चन्द और कत्यूरी प्रारम्भ में समकालीन थे और उनमें सत्ता के लिए संघर्ष चला जिसमें अन्त में चन्द विजयी रहे। चन्दों ने चम्पावत को अपनी राजधानी बनाया। प्रारंभ में चम्पावत के आसपास के क्षेत्र ही इनके अधीन थे लेकिन बाड़ में वर्तमान का नैनीताल, बागेश्वर, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा आदि क्षेत्र इनके अधीन हो गए|
  • राज्य के विस्तृत हो जाने के कारण भीष्मचंद ने राजधानी चम्पावत से अल्मोड़ा स्थान्तरित कर दी जो कल्यांचंद तृतीय के समय (1560) में बनकर पूर्ण हुआ|
  • इस वंश का सबसे शक्तिशाली राजा गरुड़ चन्द था|
  • कल्याण चन्द चतुर्थ के समय में कुमाऊं पर रोहिल्लो का आक्रमण हुआ| तथा प्रशिद्ध कवी ‘शिव’ ने कल्याण चंद्रौदयम की रचना की|
  • चन्द शासन काल में ही कुमाऊं में ग्राम प्रधान की नियुक्ति तथा भूमि निर्धारण की प्रथा प्रारंभ हुई|
  • चन्द राजाओ का राज्य चिन्ह गाय थी|
  • 1790 ई. में नेपाल के गोरखाओं ने चन्द राजा महेंद्र चन्द को हवालबाग के युद्ध में पराजित कर कुमाऊं पर अपना अधिकार कर लिया , इसके सांथ ही कुमाऊं में चन्द राजवंश का अंत हो गया|

>>गढ़वाल का परमार (पंवार) राजवंश –

  • 9 वीं शताब्दी तक गढ़वाल में 54 छोटे-बड़े ठकुरी शासको का शासन था, इनमे सबसे शक्तिशाली चांदपुर गड  का राजा भानुप्रताप था , 887 ई. में धार (गुजरात) का शासक कनकपाल तीर्थाटन पर आया, भानुप्रताप ने इसका स्वागत किया और अपनी बेटी का विवाह उसके साथ कर दिया।
  • कनकपाल द्वारा 888 ई. में चाँदपुरगढ़ (चमोली) में परमार वंश की नींव रखीं, 888 ई. से 1949 ई. तक परमार वंश में कुल 60 राजा हुए।
  • इस वंश के राजा प्रारंभ में कर्तिकेयपुर राजाओ के शामंत रहे लेकिन बाड़ में स्वतंत्र राजनेतिक शक्ति के रूप  में स्थापित हो गए|
  •  इस वंश के 37वें राजा अजयपाल ने सभी गढ़पतियों को जीतकर गढ़वाल भूमि का एकीकरण किया। इसने अपनी राजधानी  चांदपुर गढ को पहले देवलगढ़ फिर 1517 ई. में श्रीनगर में स्थापित किया।
  • परमार शासकों को लोदी वंश के शासक बहलोद लोदी ने शाह की उपाधि से नवाजा , सर्वप्रथम बलभद्र शाह ने अपने नाम के आगे शाह जोड़ा|
  • 1636 ई. में मुग़ल सेनापति नवाजतखां ने दून-घाटी पर हमला कर दिया ओर उस समय की गढ़वाल राज्य की संरक्षित महारानी कर्णावती ने अपनी वीरता से मुग़ल सैनिको को पकडवाकर उनके नाक कटवा दिए , इसी घटना के बाद महारानी कर्णावती को “नाककटी रानी” के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
  • परमार राजा प्रथ्विपति शाह ने मुग़ल शहजादा दाराशिकोह के पुत्र शुलेमान शिकोह को आश्रय दिया था इस बात से औरेंजेब नाराज हो गया था|
  • 1790 ई. में कुमाऊॅ के चन्दो को पराजित कर, 1791 ई. में गढ़वाल पर भी आक्रमण किया लेकिन पराजित हो गए। गढ़वाल के राजा ने गोरखाओं से संधि के तहत 25000 रूपये का वार्षिक कर लगाया और वचन लिया की ये पुन: गढ़वाल पर आक्रमण नहीं करेंगे , लेकिन 1803 ई. में अमर सिंह थापा और हस्तीदल चौतरिया के नेतृत्व में गौरखाओ ने भूकम से ग्रस्त गढ़वाल पर आक्रमण कर उनके काफी भाग पर कब्ज़ा कर लिया।
  •   14 मई 1804 को देहरादून के खुड़बुड़ा मैदान में गोरखाओ से हुए युद्ध में प्रधुमन्न  शाह की मौत हो गई , इस प्रकार सम्पूर्ण गढ़वाल और कुमाऊॅ में नेपाली गोरखाओं का अधिकार हो गया।
  • प्रधुमन्न  शाह के एक पुत्र कुंवर प्रीतमशाह को गोरखाओं ने बंदी बनाकर काठमांडू भेज दिया, जबकि दुसरे पुत्र सुदर्शनशाह हरिद्वार में रहकर स्वतंत्र होने का प्रयास करते रहे और उनकी मांग पर अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड हेस्टिंग्ज ने अक्तूबर 1814 में गोरखा के विरुद्ध अंग्रेज सेना भेजी और 1815 को गढ़वाल को स्वतंत्र कराया  , लेकिन अंग्रेजों को लड़ाई का खर्च न दे सकने के कारण गढ़वाल नरेश को समझौते में अपना राज्य अंग्रेजों को देना पड़ा।
  • शुदर्शन शाह  ने 28 दिसम्बर 1815 को अपनी राजधानी श्रीनगर से टिहरी गढ़वाल  स्थापित  की। टिहरी राज्य पर राज करते रहे तथा भारत में विलय के बाद टिहरी राज्य को 1 अगस्त 1949 को उत्तर प्रदेश का एक जनपद बना दिया गया।
  • पंवार शासको के काल में अनेक काव्य रचे गए जिनमे सबसे प्राचीन मनोदय काव्य है जिसकी रचना भरत कवि ने की थी|

Next – उत्तराखंड का इतिहास : आधुनिक काल

 

Also read …उत्तराखंड का इतिहास भाग – 2 (Uttarakhand History Part -2)

उत्तराखंड का इतिहास भाग – 1 (Uttarakhand History Part -1)

उत्तराखंड का इतिहास : प्राचीन काल (Uttarakhand History : Ancient Period)

Uttarakhand History

Uttarakhand History

Leave a Comment